२४ जून का शंका समाधान सत्र
मनमोहन जी बीकानेर से:
प्रश्न (१) : भैया जी मैंने पंडित जी महाराज के दर्शन किए हैं और उन्हीं का ध्यान करता हूँ। लेकिन मुझे तो सर्वत्र गुरु महाराज ही नज़र आते हैं, उन्हीं में मेरा मन लगा रहता है। मेरा चिंतन भी गुरु महाराज का ही होता है। सोते-जागते, खाते-पीते, चलते-फिरते कोई भी काम करूँ मुझे उन्हीं का स्मरण होता है।
श्री संजीव भैया जी द्वारा उत्तर :– यह बहुत अच्छी स्थिति है । हमलोग शरीर में अटक कर रह जाते हैं । असल में गुरु महाराज में परम पूज्य जिया माँ, परम पूज्य पंडितजी महाराज, परम पूज्य बड़े भाई भैया, परम पूज्य मँजले भैया, और भी मैं किन किन का नाम गिनाऊँ, हम सबका उद्देश्य तो यही है की हम गुरु महाराज में जाकर अपने को लय कर दें। मुझे कुछ दिनों पहले किसी ने कहा कि मैंने जिया माँ को देखा और उनका ध्यान करना शुरू किया मगर सीधा ऐसा लगता है जैसे गुरु महाराज का ही ध्यान कर रहा हूँ । तो जो लोग गुरु महाराज में लय हो गए हैं, जिन में कोई फ़र्क़ नहीं रह गया हो, सब एक ही हैं। तो वैसे भी गुरु महाराज ने तो कहा है, लिखा है कि जो भी हमारे पास आता है हम तो उन्हें दादा गुरु महाराज के सुपुर्द कर देते हैं। हमारा तो बस इतना सा ही काम है। यही तो हमारे यहाँ की बहुत बड़ी ख़ूबी है कि हम कहीं से भी शुरू करें, हमारा कनेक्शन सीधे गुरु महाराज से होते हुए ईश्वर तक हो जाता है। गुरु महाराज बताते थे कि हम साधक को अपने गुरु को सुपुर्द कर देते हैं और वो अपने गुरु को कर देते हैं ऐसे सिलसला चलता है और ईश्वर से कनेक्शन बन जाता है। गुरु महाराज ने तो यहाँ तक कहा कि गुरु शक्ति और ईश्वर शक्ति में कोई फ़र्क़ नहीं है। वो तो ऐसा ही है कि ‘जहाँ ले चलोगे, वहीं मैं चलूँगा’ वाली बात है। उनकी कृपा से जो भी हो रहा है, वही हो रहा है।
वीजेंद्र प्रताप, जयपुर से
प्रश्न (२) : ध्यान करते समय मेरा मन इधर उधर चला जाता है , तो मन को ध्यान में स्थिर करने के लिए क्या करूँ?
श्री संजीव भैया जी द्वारा उत्तर :– यह तो हम सबको ही होता है और गुरु महाराज ने इसके लिए प्रत्याहार बताया है कि जब हमारा मन इधर उधर जाए तो वापिस प्रकाश की तरफ़ अपने मन को वापिस ले आएँ। ये तो मन का natural process है।थोड़ा सा उसका इधर उधर जाने का स्वभाव है। इसलिए हमारे यहाँ इसमें प्रेम का पुट दे दिया जाता है ताकि हम किसी तरफ़ आकर्षित रहें। मन को साधना बहुत मुश्किल काम है। सारी साधना ही इसके लिए है। उसमें कर्तव्य बुद्धि से थोड़ी देर चिंतन भी करें।
प्रश्नकर्ता, ग़ाज़ियाबाद से:
प्रश्न (3) : चरणस्पर्श भैया जी, आपसे बहुत पहले 2010 के करीब email पर मेरी बात हुई थी। मुझे कुछ प्रॉब्लम थी मैने आपसे शेयर किया था और आपने कई बार जवाब भी दिया था। उसके बाद मुझे काफी हेल्प मिली थी। उसके बाद फिर मेरी शादी हो गयी। 2010 से पहले 2009 में मैंने अमित भैया जी की कंपनी alacrity में ही ट्रेनिंग ली थी। भाभीजी के under में। वहां पर जब थी तो दिमाग मतलब ऐसा था कि एकदम इतनी शांति थी कि जैसे मन मे कुछ बचा ही नहीं। किसी वजह से गुस्सा आना बिल्कुल नही था, कई सारी चीजें मतलब एकदम शांति थी और जब मैं वहां से आई तो कुछ मुझे प्रॉब्लम हुई थी उसके बाद में आपसे भी बाते हुईं थीं पर तब से अब तक बस प्रॉब्लम ही प्रॉब्लम चल रही है मतलब माइंड अभी शांति में नही है और गुस्सा बहुत ज्यादा आता है और अब तो शादी भी हो गयी है। मैंने भैया जी से एक बार बात की थी जब लखनऊ में वो मुझे मिले थे।
मैंने कहा था कि भैयाजी पूजा में एकदम मन नही लगता है, अब तो जैसे लगता है कि गुरु महाराज ने भी मुझे दूर कर दिया। मेरी शादी हो गयी। घर से पापा ने क्या विदा किया लग रहा है कि गुरु महाराज ने भी मेरी विदाई कर दी। अब तो जैसे वो मुझसे प्यार नही करते, अब मेरा मन पुजा में नही लगता। तो उन्होंने मुझे ये बतलाया था कि अभी बेटा बदलाव है।ये धीरे धीरे ठीक हो जाएगा।
श्री संजीव भैया जी द्वारा उत्तर : ये जो बात आपने कही है, ऐसे phase का खुद भी अनुभव किया है और मैं अक्सर जब लोगों से बात करता हूँ तो मुझे तो कुछ कुछ ऐसा लगने लगा है कि संसार से हमारा ध्यान हटा के दूसरी तरफ लगाने का जो सिलसिला हमारे संतजनों ने, गुरुमहाराज ने शुरू किया उसका कारण ही ये है कि अगर हम संसार की तरफ ही देखते रहेंगे, संसार में ही सुख की तलाश करते रहेंगे या हम ये सोचेंगे कि ये जो दुख हैं वो क्या है तो शान्ति नहीं मिलेगी। थोड़ी देर को अगर सुख आ भी जाता है तो कहीं न कहीं से कुछ और दुख चला आता है। तो ये सिलसिला जो है सुख और दुःख का और उसमें अक्सर ऐसी भी परिस्थिति आ जाती है कि महीनों सालों ऐसा लगता है कि बाकी सब चीजें गौण हो गईं हैं दुःख ही दुःख आये चले जा रहे हैैं । तो उस स्थिति में मेरे को दो तीन बातें लगीं। एक तो ये है कि परमपूज्य छोटे भैया, पापाजी ये कहा करते थे कि कुम्हार घड़े को ठोक ठोक कर उसको शेप देता है। तो अब वो shape दे रहा या हमारे को test कर रहा है? क्या यही जिंदगी है, ये तो नही पता लेकिन मैंने ये देखा है कि कहीं न कहीं वह अंदर जो एक हाथ लगा लेता है तो कुम्हार घड़े को टूटने नही देता । तो वो मुझको हमेशा महसूस होता रहा है। तो आपने यहां जॉइन किया ये बात पूछी तो कहीं न कहीं एक कनेक्शन तो बना ही हुआ है।
प्रश्नकर्ता : भैयाजी जी बात यही है कि मैं ये जानती हूँ कि ये सुख दुख अब खत्म नहीं होंगे। अगर मैं इसका इंतजार करूंगी तो इंतज़ार ही करती रह जाऊंगी। मुझे लगता है कि वो बातें जो मैंने आजतक सीखा है पढ़ा है, सुना है कि जीवन मिला है मोक्ष पाने के लिए। मुझे लगता है, मेरे अंदर मैं शायद अभी छोटी बच्ची हूँ, मुझे नहीं पता, मुझे ऐसा लगता है कि भगवान क्या है मुझे क्या पता। मैं भगवान को नही जानती, शायद मैं जानना भी नही चाहती मैं केवल गुरु महाराज जी को ही जानना चाहती हूँ और शादी से पहले मैंने बचपन से मम्मी पापा जी के through गुरु महाराज जी को जाना है तो मैंने अपने बाबा को देखा नही तो मुझे ऐसा लगता था कि शायद ये मेरे बाबाजी हैं, मेरी दादी है। लेकिन वो हमेशा गुरु महाराज और जिया मॉं ही बोलते थे। जब शादी से पहले कुछ प्रॉब्लम इतनी ज्यादा हो गयी उस समय मुझे लगा कि मेरे आस पास मेरा कोई नही है, तो उस वक़्त गुरु महाराज जी से मैंने एक अजीब सा रिश्ता जोड़ लिया था। बस मैं गुरु महाराज जी को गुरु महाराज जी न कह के मुझे ऐसे लगता था जैसे ये मेरे पापा हों, मेरे बाबुल हों, मेरे बाबूजी हों। जो कुछ हो मेरे सब आप हो तब से आजतक मैं उनको बाबूजी कह के बुलाती हूँ ये मैं आज केवल आपको बता रही हूँ कि मैं गुरु महाराज जी को बाबूजी बोलती हूँ। पापा के रूप में देखती हूँ उनको। मुझे लगता है कि जब भी मुझे पापा की जरूरत हो वहां पे मैं उनको बोलती हूँ कि मुझे नही पता आप हो। आप आओ मुझे नही पता। मतलब इस तरीके से उनसे कई बार झगड़े भी करती हूँ सब कुछ करती हूँ, तब से मैंने उनको अपने बाबूजी की जगह पर रख दिया है। मुझे लगता है कि मेरा पूजा में मन नहीं लगता। मै ये सोचती हूँ कि सारी दुनिया पूजा कर रही है, सब गुरुमहाराज को याद करने के टाइम पर पूजा कर रहे हैं साधना कर रहे हैं, सब अपना काम कर रहे हैं फिर मैं क्यों नहीं कर रही हूँ। तब फिर मेरा झगड़ा होता है कि आपने मुझे दूर कर दिया, आप मुझे अपने पास नहीँ बुला रहे हो। मैं सत्संग नहीं जा पा रही हूँ। मुझे सत्संगी परिवार में नहीं डाला आपने। मतलब शादी के बाद मेरी इतनी इच्छा थी कि एक बार मैं जयपुर भंडारे में चली जाऊं, हस्बैंड से भी कई बार बोला कि मुझे एक बार आप ले चलो, लेकिन ऐसा कुछ काम पड़ जाता है कि हम जा ही नही पा रहे हैं। तो मतलब अंदर से बहुत सारी उलझन होती है। अब तो ऐसा हो गया है कि मैं पूजा करने के लिए नहा धो कर के पहले रूटीन था पर अब तो शायद ऐसा हो गया है कि अलमारी के पास जाने को भी जी नहीं करता। जाती हूँ तो पहले ये था कि मैं गुरु महाराज की तस्वीर को देखती रहती थी। देखने में इतना सकून मिलता था कि ऐसा लग रहा है वो मुझे देख रहे हैं मैं उन्हें देख रही हूँ। शादी से पहले जब मैं छोटी थी तो अब क्या हो गया है कि जैसे लगता है नज़रें ही नही मिलतीं। अब ये पता नही कि क्या हो गया है। जरा सा देखती हूँ तो मुझे थकान सी लगती है। ऐसा क्या हो गया है में आपको देख भी नही पाती हूँ। पता नही बिल्कुल मन ही नहीं लग रहा है। समझ नही आ रहा है ये है क्या।
श्री संजीव भैया जी द्वारा दिए गए उत्तर :– एक तो अभी मैंने जो कुछ सुना उसका सार मुझे तो ये लगता है कि जब आपने एक रिश्ता जोड़ लिया है तो यही गुरु महाराज ने भी कहा कि गुरु शिष्य को हटा के हमसे किसी तरह से एक रिश्ता जोड़ लो वो ज्यादा अच्छा है। ये तो बड़ी अच्छी बात है। अब रही बात ये कि उन्होंने ये क्यों कहा? वो इसीलिए कहा कि अक्सर गुरु शिष्य हो या हम जैसे जो लोग मंदिर जाते हैं, वहां पर दर्शन करते हैं तो मन जब इस तरह का हो जाता है तो वो phase आ जाता है। लेकिन अगर हमने ऐसा रिश्ता बना लिया जैसा आप ने अभी describe किया तो उसमें क्या है कि मन अगर थोड़ा अलग भी हो जाये तो वो रिश्ता तो बना ही हुआ है । ये फेज तो लाइफ में आते ही हैं और अक्सर क्या होता है कि जब हम बहुत परेशानियों और दुख के पहाड़ से गुजरते हैं तो कुछ परिवर्तन आते हैं और इस तरह की मनःस्थिति बन जाती है लेकिन आपने जो describe किया है कि रिश्ता है और रिश्ता बना हुआ है। आपने यहां ये प्रश्न उठाया है उससे मेरे को यही लगता है कि अंदर ही अंदर काम चल रहा है, जिसे कहते हैं कि भिक्षा और प्रतीक्षा वाली बात है । ये सब phases हैं। एक और तरीके से अगर इसको देखा जाए तो हमारी जो स्थितियां हैं हमेशा एक सी नही रहतीं। कभी जब सत प्रधान होता है हमे शांति और आनंद जैसा आपने पहले बताया वो महसूस होता है। उसके बाद जब रज प्रधान होता है तो मन चलायमान रहता है। फिर जब तम प्रधान होता है तो काफी आलस्य हो जाता है, और इस तरह के, जैसे कि इच्छा ही नही करती कि कहीं बैठा जाए । तो ये ऐसा नही है क्यों कि आप ऐसे घर में हो और ये सबके साथ सत, रज, और तम का प्रभाव चलता है, किसी पर थोड़ा कम और किसी पे थोड़ा ज्यादा होता है । कुछ phases छोटे होते हैं कुछ बड़े होते हैं। अपना काम तो ये है कि जो रिश्ता है जो नाता है, जिस तरीके से हम उनसे जुड़े हुए हैं बस उनसे प्रार्थना यही करते रहें कि जोड़े रहें और अपनी शक्ति, प्रकाश और कृपा हम पर करते रहें तो हमारी गाड़ी चलती रहेगी। जैसे आपने कहा कि हम भंडारे में नही जा पाते तो जब कोई चीज हमे नही मिलती है तो उसकी वैल्यू पता लगती है। लेकिन एक बात और भी है। पापा जी ने एक बार कहानी बताई थी कि कुछ लोग वहां जा के और कुछ कुछ और बातें सोचते रहते हैं कुछ लोग वहां नहीं पहुंचते है पर वे वहां की ही सोंचते रहते हैं। अब जहां की सोंच रहे हैं ये समझो कि आप वहीं हो। आप जिस तरीके से गुरुमहाराज से जुड़े हो वो तो मेरे हिसाब से बड़ी ऊंची बात है। उसको बनाये रखो और इन स्थितियों की ज्यादा चिंता करने की जरूरत नही है ये तो आएंगी और जाएंगी।
प्रश्नकर्ता : जब मैं पूजा करती थी, साधना जब हो जाती थी तो ज्यादा पूजा करने से भी अहम आ जाता था कि मैं पूजा कर रही हूँ। अब बात ये है कि नहीं करती हूँ तो ठीक है मैं रो रही हूँ कि मैं पूजा नही कर रही हूँ। अगर करती हूँ तो कही न कहीं ये अहम तो आ ही जाता है। तो इस अहम से कैसे बचा जाए ? मैं पूजा कर रही हूँ, मैं साधना कर रही हूँ या मैं गुरुमहाराज के करीब पहुंच गई या मैंने आपसे बात कर ली तो अहम आ गया कि मैने भैया जी से बात कर ली। मतलब ये अहम है, इससे कैसे बाहर आया जाए। समझ नही आता ये अहम है या फख्र कहूँ क्या है ये ?
श्री संजीव भैया जी : ये भी बड़ी अच्छी बात है। आपको थोड़ी चिंता करना कम कर देना चाहिए। चाहे वो आध्यात्मिक चिंता हो, चाहे सांसारिक हो या फिर मानसिक हो। चिंताओ को उन पर छोड़ देना चाहिए। ये स्थिति जो आप बयान कर रहे हो, ये जो प्रश्न है, बड़ा अच्छा प्रश्न है। अहंकार ही हमारे बीच का परदा है और वो कई तरीके से आता है। अब प्रश्न ये उठता है कि इससे हम कैसे बचें। तो इसके तो बहुत सारे तरीके बतलाये गए हैं। उसमें जब भी जैसे पूजा होती है सत्संग होता है तो उसके बाद नैवेद्य चढ़ाया जाता है तो उसका कारण क्या है? असली कारण यही है कि हमने अभी बैठ के जो भी कुछ किया उसका जो भी फल मिला उससे कहीं ऐसा नहीं हो कि हमें ऐसा लगने लग जाये जैसे पैसे से अहंकार आ जाता है। ऐसे ही हमने जो अभी पूजा कर के पाया उससे हमें कुछ अहंकार न उत्पन्न हो तो जो भी कुछ अभी हमने पाया उसको आप ही के चरणों में रख देते हैं। तो नैवेद्य का जो असली कारण है वो यही है कि हम जो भी कुछ लें आपका प्रसाद मान के लें अपना मान के न लें। जो भी कुछ हमने पाया वो आपके चरणों में पहले डाल लें फिर उसको आपके प्रसाद की तरह लें। तो मुख्य चीज ये है कि वो चाहे आध्यात्मिक हो या सांसारिक, जो कुछ हमने पाया वो आपकी तरफ से आया हुआ जानें, अपनी शक्ति से या अपनी वजह से आया हुआ न जानें। ये उसका आध्यात्मिक महत्व है। वो ही करना चाहिए कि जो भी कुछ हमको मिला जैसे भी मिला वो आपके वजह से मिला। तो जैसा आपने कहा कि पिता माना हुआ है तो वो बड़ी अच्छी बात है। जो उन्होंने दिया और जो नही है वो भी बड़ी अच्छी बात है।
अमरजीत मिश्रा, बेगूसराय
प्रश्न (४) : आप इतनी दूर रहते हुए भी हमलोगों को याद करते हैं हमें अपने साथ जोड़े रखा, इस बात के लिए बहुत अनुग्रहित हूँ। आप हमें याद करते हैं अपने साथ जोड़ा, इन बात के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। बस आपकी आवाज सुन सकें इसलिए इस बार जॉइन किया। बस सुनना चाहता हूँ केवल आपको। जो हो रहा है आप जानते हैं।
श्री संजीव भैया जी द्वारा उत्तर :– हाँ, ये तो असल में मेरे को खुद याद आ रही थी एक समय था जब मुझको तो बड़े ताऊजी या और लोगों के पास जा के प्रश्न करने में बड़ी झिझक होती थी। तो समझ नही आता था, फिर पटना के प्रोफेसर बैद्यनाथ सहाय जी खुद ही बोले कि हमारे लड़के जो हैं वो जहां तुम हो आजकल वही आ गए हैं। तो मैं तुम्हारे यहां आया करूँगा। फिलोसोफी के प्रोफेसर थे, तो उनसे बहुत बहुत, कई बार तो घंटों घंटों प्रश्नोत्तर, उल्टे सीधे प्रश्न जो दिमाग में आते रहते थे उनसे पूछा करता था, तो मुझे लगा कि इस सत्संग में तो हमेशा जहां जहां जैसी जैसी जरूरत रही वैसी वैसी मदद हमेशा मिलती रही। तो जितना करना चाहिए उतना तो मैं नही कर पाता, लेकिन ये है कि इस जरिये से थोड़ा समय और आपलोगों से बात करने का मिल जाता है। ये सब गुरुमहाराज की ही कृपा है। उन्ही की प्रेरणा है।
अमरजीत मिश्राजी : मैं कभी उनसे नही मिला, छोटे भैयाजी से भी नही मिला, केवल टुंडलावाले भैया से मिला हूँ उसके बाद आपके भी कभी दर्शन नही हुए फिर भी आपने मुझे याद किया बहुत बहुत धन्यवाद।
श्री संजीव भैयाजी : सब उनकी कृपा है जरूर मुलाकात होगी अगर गुरुमहाराज की इच्छा रही तो जरूर। बहुत अच्छा लगा आपसे बात करके । ये एक तरीका है तो जिन लोगों ने मदद की है आप से बात करने के लिए उनसे कहकर जब कभी इच्छा करे तो संडे को आप बात कर लिया करें। नमस्कार, मिश्राजी।
अनिल कुमार मल्लिक, दरभंगा से:
प्रश्न (५): हम जयपुर भण्डारे पर भी गए थे वहां भी वालंटियर में नाम लिखाया की कुछ सेवा का मौका मिल जाये। यहां तो हम क्या कर पाएंगे सेवा अपनी सेवा नही हो पाती। एक छोटा सा घर बना रहे हैं सत्संग के लिए। हमारे यहां सत्संग होता है। हमारी इच्छा थी कि यहां गुरुजन के द्वारा सत्संग हो। आचार्य जी के द्वारा तो होता ही है इसीलिए एक छोटा सा हॉल टाइप का बना रहे हैं जहां अभी हम बैठे हुए हैं। इसमें भी बहुत तरह की विघ्न बाधा आ रही है। ये पूरा नही हो पा रहा है, क्या ये मिशन पूरा होगा कि नही ? हम चाहते है इस साल से अमित भैया जी के द्वारा या अगले साल से यहां सत्संग हो। अमित भैया जी खुद बोले थे कि तुम्हारे घर पर आएंगे। लेकिन ये मिशन पूरा होगा कि नहीं हम ये जानना चाहते हैं। हम इसको कम्पलीट कर पाएंगे कि नही? और अमित भैयाजी आएंगे की नही?
श्री संजीव भैया जी द्वारा दिए गए उत्तर :– अब ये प्रश्न जो है कि आगे की चीज होगी कि नही होगी ये तो वही जानें जिसको आगे दिखाई देता हो। लेकिन इसमें दो तीन बातें मैं आपको समझा सकता हूँ।
इसमें एक चीज तो क्या है, कि हम संसार की चिंताओं को छोड़ने के लिए जो काम शुरू करते हैं फिर हमको उसी की चिंता सताने लगती है। तो ये कहाँ तक ठीक है तो एक तो प्रश्न ये उठता है।
दूसरी चीज क्या है कि अगर हम उनका काम कर रहे हैं और ये मान के चल रहे है कि वही कर रहे हैं तो फिर उसमें आपा नही जोड़ना चाहिए। यानी कि राजी और रिज़ा, यानी जो वो कर रहे हैं या जो वो करा रहे हैं वो उनकी मर्जी से हो रहा है तो जो होगा सो अच्छा ही होगा, उन्ही की मर्जी से होगा। तो उसमें अगर निष्काम सेवा करनी है तो उसमें काम यानी स्वार्थ को बीच में नही लाना चहिये चाहे वो अच्छे वजह से ही क्यों न हो।
तीसरी चीज ये है कि अपना काम तो सिर्फ चाकर बनने का है लाइन में लगने का है अब शबरी के घर राम कब आएंगे ये तो राम के ऊपर है यानी ये है कि हम किसी गुरुजन को नही बुलाते बल्कि गुरु महाराज स्वयं आते हैं, जब उनको आना होता है। मूलतः तो गुरु महाराज को आना है अब वो किस रूप में आएंगे , कब आएंगे, कैसे आएंगे ये तो वही जानें। हमें अपना काम निष्कामता से, अपनी सेवा बिना किसी स्वार्थ के करते रहना चाहिए बाकी उनपे छोड़ देना चाहिए।
Pp bhaiya ji ke charano me pranam…………
bhaiya ji kshama karenge my feedback hai..
1.sound is clear but volume is low.
2.sometime meanwhile intrrupted beeping and noising. …… 3.karayakarm samapan ke kuch samay pahle. Meanwhile bhajan is start and sound is intrrupted. Every thing is ok bhaiy ji.