कुछ शंका ऐसी हैं जो अटक जाती हैं। हमें अटकाव से आगे बढ़ने के लिए कभी-कभी बाहरी सहायता की भी जरूरत होती है। गुरु महाराज से निवेदन है कि हम सब की शंकाओं का समाधान करें।
मोहन प्रसाद यादव जी
प्रश्न (१) : गुरुजनों के मंच पर खड़े होने से पहले ही पण्डाल में खड़े होना गुरुदेव की नजर में अदब है या बेअदब?
श्री संजीव भैया जी द्वारा उत्तर: मुझे यह लगता है कि गुरु महाराज ने गुरु और शिष्य की परिपाटी को हटाया इसलिए की द्वैत उसमें रहता है।द्वैत से अद्वैत की ओर गुरु महाराज उनको ले गए, उन्होंने कहा सखा मान लो, पिता मान लो, भाई मान लो, एक रिश्ता बना लो और उस रिश्ते में फिर अदब-बेअदब वह एक अलग तरीका हो जाता है।तो हम परिवार में जब व्यवहार करते हैं तो अदब-बेअदब से अलग है। प्रेम से जब व्यवहार होता है , प्रेम में जब भाव होता है तो हम भाव के साथ अगर कुछ करते हैं तो वह सही है और जो बिना भाव के अगर खड़े हो जाए बैठ जाए इसका कोई मतलब मेरे समझ में नहीं आता।
सिर्फ एक परिपाटी बना देने से, रूढ़ियां बना देने से हमारे जीवन में कोई समस्या का कोई समाधान नहीं होगा। रूढ़ियों को तोड़कर गुरु महाराज ने हमको एक नई चीज़ दी। वह एक सरल और सुगम तरीका बताया उस ध्येय तक पहुंचने के लिए। तो हमें फोकस (focus) जो है हमारा तरीका वह यह होना चाहिए कि हम अपने ध्येय पर पहुंच रहे हैं या नहीं।बाकी की चीजें तो रास्ते की चीजें है। अगर प्रेम से हम बर्ताव करें लोगों से व्यवहार अच्छा करेंगे तो वही हमें भी मिलेगा ।लेकिन बाकी तो सब रूढ़िवादी है।
प्रश्न (२) : मुझे कहा गया जिनका दर्शन हुआ उनका ध्यान करें, मैं जिया मां का ध्यान करती हूं, परंतु गुरु महाराज का ध्यान होने लगता है क्या करूं?
श्री संजीव भैया जी द्वारा उत्तर: जो लोग जिया मां का ध्यान करते हैं वह अक्सर ऐसा ही पाते हैं कि शुरू जिया मां से जिया मां को देखा, उनका ध्यान किया और वह गुरु महाराज का ध्यान होने लग जाता है स्वतः ही। उसका कारण यह है कि हमारे यहां के जितने भी संत हैं आप उस सिलसिले के अगर परम पूज्य बड़े भैया, परम पूज्य पंडित जी महाराज, परम पूज्य मंझलें भैया, परम पूज्य छोटे भैया सब गुरु महाराज में मिले। तो हम कहां से शुरु करते हैं, वह एक तरह से गौण है, क्योंकि जब सब एक में मिले हुए हैं तो वह चीज एक ही है। और यह अक्सर हुआ करता है कि एक से शुरू करते हैं और गुरु महाराज का अगर हम स्वतः ही उनके ध्यान में चले जा रहे हैं तो उसमें तो कोई बुराई तो बिल्कुल ही नहीं है । गुरु महाराज ने हमें यह बताया कि गुरु शक्ति और ईश्वर शक्ति में कोई फर्क नहीं है। किसी भी रूप को हम लेकर चलें । वह प्रकाश रूप लेकर चलना है जहां से हम अपनी शुरुआत करते हैं लेकिन ध्येय हम सबका एक ही है,और उस ईश्वर स्वरूप में हमको खुद ही मिल जाना है। ध्यान उसका करना है जो उसमें मिला हुआ है इसलिए कि हम उसमें जाकर मिल जाए।
वीना सिंह जी, राँची से
प्रश्न (३) : हमारे यहां अनेकों पर्व त्यौहार मनाए जाते हैं, जिसमें त्योहार से संबंधित देवी देवताओं की पूजा होती है जैसे दशहरे में मां दुर्गा बसंतपंचमी में सरस्वती मां तो क्या महाराज जी के साथ हमें इनकी भी पूजा करनी चाहिए या सिर्फ महाराज जी की?
श्री संजीव भैया जी द्वारा उत्तर: बड़ा अच्छा प्रश्न है यह, इसको दो तरीके से देखता हूं कि एक तो यह कि गुरु महाराज ने इस प्रश्न का जवाब आध्यात्मिक विषय मीमांसा में किया है, हिंदुओं के हजारों साल का इतिहास है और उसमें बहुत ही रिसर्च भी की गई शास्त्रों में तरह तरह की चीजें जो अध्यात्म यात्रा में पाई गई उनको देवी देवताओं के रूप में , जिस-जिस आध्यात्मिक स्थिति का साधक , हर साधक जब आध्यात्मिक यात्रा करता है को विशेष स्थिति आती है , और हर स्थिति का एक हिंदू धर्म में एक देवी देवता बना दिया गया । अब उनका अपना स्थान है ,लेकिन असली बात यह थी कि वह देवी देवता एक आध्यात्मिक स्थिति का स्वरूप है । ज्ञान का स्वरूप सरस्वती मां है, और परम पूज्य छोटे भैया ने दुर्गा, जो नव दुर्गा में 9 दिन क्यों उपवास करना होता है उसके बारे में बताया; तो यह चीजें जो है अगर हम देखे तो उनका अपना महत्व है लेकिन यह सब रास्ते की ही चीजें है। तो जैसे गुरु महाराज ने किसी धर्म के बारे में ऊंचा या नीचा नहीं, सब को इज़्ज़त दी , सब धर्म और उनके पैगंबरों को इज़्ज़त दी और हर देवी-देवता की इज़्ज़त हम करें लेकिन जो असली चीज है जैसे गीता में भगवान कृष्ण ने कहा कि जो जिसको भजेगा उसको पाएगा। अर्जुन से कह रहे हैं कि तुम तो सिर्फ मेरी शरण में आ जाओ तो मुझे पा जाओगे। देवी देवताओं की करोगे तो देवी देवताओं को पाओगे। भूत पिशाच को करोगे तो उनको पाओगे वगैरा-वगैरा। तो हमें अगर परमात्मा तत्व करना है तो उसी ध्येय की और हम चलते रहे। एक और चीज आध्यात्मिक विषय मीमांसा में इस सन्दर्भ में गुरु महाराज ने बताई कि जो व्यवहार है जो चीजें घर में हो रही है उनको भी करते चलना चाहिए उसमें कोई बुराई नहीं है बच्चों को अगर त्योहारों के बारे में बतलाना है उसका क्या महत्व है और उनके साथ अगर बैठकर पूजा करनी है तो उसमें कोई बुराई नहीं है।
राम यादव जी, ग़ाज़ीपुर से
प्रश्न (४) : बच्चे सत्संग में नहीं आते है, भाड़ा देने पर भी इंकार करते हैं।
श्री संजीव भैया जी द्वारा उत्तर: तो वह जो प्रश्न जो अक्सर हम लोगों के पास होता है कि पहली चीज तो यह है कि हम जिन लोगों को अपना समझते हैं , बच्चे लोग और भी रिश्तेदार, वह लोग या तो सुनते नहीं है और अक्सर हम चाहते हैं उनको कि हमारे तरह वह भी सत्संग में आए तो अक्सर वह भी नहीं सुनना चाहते हैं ।
यह बड़ी अच्छी बात है। पहली चीज तो यह कि अगर हम उस परिवार में हैं , गुरु महाराज के परिवार में हैं, तो वह सब इसी परिवार में हुए तो फिर आना जाना, मतलब जब वह परिवार में हैं तू जहां है वह उनके हैं। तो अब बात यह होती है कि वह हमारी क्यों नहीं सुन रहे हैं ? तो मैं दो एक बातें कहूँगा कि एक तो यह जो हम उनसे कह रहे हैं वह एक चीज है लेकिन जो हमारा व्यवहार उनके तरफ अब तक रहा उसको अगर हम देखें तो कहीं ना कहीं यह चीज रही होगी कि जिसकी वजह से यह दूरी पैदा हो गई।
दूसरा आजकल जो संसार में जैसी हवा बह रही है कि हर कोई दौड़ा चला जा रहा है किसी तरफ, अब यह पता नहीं कहां जा रहे हैं लेकिन दौड़ रहे हैं। कोई संसार में इज़्ज़त चाहता है कोई पैसा चाहता है कोई और कुछ चाहता है, और बाकी जो चीजें हैं वह सब गौण होती चली जाती हैं। तो घर वालों का जो सुनना है उसके पास उनके लिए समय ही नहीं है। तो यही है कि गुरु महाराज से हम प्रार्थना ही कर सकते हैं जिन लोगों को हम चाहते हैं उनके लिए हम प्रार्थना करने की भाई गुरु महाराज उनको सदबुद्धि दें , जिस काम में वह लगे हुए हैं उसमें समृद्धि दे। और अगर कुछ आगे करने की हम सोचते हैं जैसे उनको सत्संग मैं भी लाने की बात होती है तो गुरु महाराज ने खुद यह कहा कि अगर किसी को आप इससे लगाना चाहते हैं तो एक तो यह हो सकता है कि जब आप ध्यान में बैठे तो उनको बगल में बैठा ले और ऐसा देखें कि जो प्रकाश आपके तरफ आ रहा है वह उनकी पास जा रहा है। तो वैसे भी उनकी सेवा हो गई और अगर उसका असर होगा, कुछ समय बाद होगा तो वह भी जुड़ जायेंगे।
दूसरी बात अक्सर मैं कहता हूं कि मैंने भी अपने जीवन में देखी है जैसे घर में एक आदमी कमाता है और कई और लोग खाते हैं, कोई जरूरी नहीं है कि सब के सब सत्संग में जाए। अगर एक दो लोग जा रहे हैं तो तो वह जो कमा रहा है उससे बाकी लोग भी खाएंगे।
श्री मोहित भैया जी द्वारा उत्तर: दूसरा उनको जोड़ने के लिए सत्संग के दौरान उनको सेवा में बुलाये जैसे साप्ताहिक सत्संग है, उसमें वह दरी बिछा दे, प्रसाद बांट दें और इतना करने से भी धीरे-धीरे वह सत्संग से जुड़ते हैं सत्संग को जानते हैं । इससे भी उनके विचार बदलते हैं। बहुत सारे लोग हमने ऐसे भी देखे हैं सत्संगी, जो कहते हैं कि पहले मैं अपने पिताजी को , ससुर जी को लाता था और बाहर छोड़कर चला जाता था, दो-तीन घंटे घूमता रहता था और फिर वापस आकर उनको ले जाता था। लेकिन इतना करने से ही मेरे विचार बदल गए और मैं सत्संग से जुड़ गया। तो सत्संग से आप कैसे भी उनको जोड़ें, धीमे धीमे गुरु महाराज का आकर्षण उनको खैच लाएगा।
अभिमन्यु सिंह, रोहतास से
प्रश्न (५): पूजा में नींद आ जाती है, घर पर पूजा नहीं हो पाती, खेती-बाड़ी और घर के काम में मन फंसा रहता है, शाम में सोते हुए गुरु वंदना करते करते कभी नींद आ जाती है और सो जाते हैं, पूजा रोज हो नहीं पाती, मगर गुरु की याद दिन में लगातार बनी रहती है। भजन को गाकर मन को शांत करता हूं , पूजा नहीं कर पाता।
श्री संजीव भैया जी द्वारा उत्तर: परम पूज्य छोटे भैया ने चिंतन पर बहुत ज़ोर दिया। चिंतन जो है उस पर ज़ोर इसलिए दिया कि वह हमें वहीं तक पहुंचाता है बल्कि मैं तो यह भी कहूंगा कि जब हम ध्यान करते हैं तो कुछ मिनट ध्यान करते हैं। गुरु महाराज ने कहा 15:20 मिनट सुबह-शाम। तो उसका असर क्या होता है कि जैसे दादा गुरु महाराज कहा करते थे कि एक टाइम ऐसा जाता है कि जो सुरती की धार उधर की और लगे रहना जैसे हम पान खाते जाते हैं और बाकी काम होते रहते हैं। पान भी खाया जा रहा है और दूसरा काम भी हो रहा है। तो कई लोग यह पूछते हैं कि भाई अगर हम इधर झुक जाएंगे तो हमारे बाकी काम खराब हो जाएंगे। तो उसके बारे में दादा गुरु महाराज का कहना था यह तो ऐसा है जैसे पान खाना, पान अपना खाते रहो और बाकी काम करते रहो। तो चिंतन ऐसा ही है, कि वह चलता रहे बाकी अपना सब होता रहे। मैं यह कह रहा था कि अगर हम ध्यान करते हैं, तो ध्यान करने से हमारी स्थिति कुछ दिनों बाद ऐसी हो जाती है कि जब हम ध्यान नहीं करते हैं तभी उनकी ओर ध्यान रहता है – वही चिंतन है। तो अगर आप चिंतन पहले से ही कर रहे हैं तो फिर प्रॉब्लम की बात नहीं है।
दूसरी बात यह है कि अगर गुरु वंदना करते हुए या भजन गाते हुए नींद आ जाती है या और काम करते टाइम भजन चल रहे हैं तो उसमें बड़ी अच्छी बात है सात्विक चीज है हां बस इतना है कि पूजा में नींद आना मेरे हिसाब से ठीक नहीं है क्योंकि कुछ लोगों को मैंने देखा है अक्सर आपने भी देखा होगा कि अगल बगल में खराटे शुरू हो जाते हैं। तो ध्यान जो है वह तो चैतन्य है, सात्विक स्थिति। नींद जो है, तामसी स्थिति है, तो नींद से किसी को आत्म ज्ञान नहीं होता। तो इसलिए कोशिश ये रहनी चाहिए कि इसमें बुराई नहीं है कि अगर आप बहुत थके हैं और ध्यान में बैठते ही नींद आती है तो एक अच्छी बात है बहुत से लोगों को तो नींद ही नहीं आती, इतना तो है कि नींद तो आ रही है आपको। लेकिन नींद और ध्यान में बहुत फर्क है,और कोशिश ये रहनी चाहिए कि हम कुछ ही देर करें इसलिए सुबह शाम का समय बतलाया है । लेकिन रात में गुरु वंदना गाते हुए या ध्यान में अगर सो जाएं तो गुरु महाराज ने यह भी कहा है कि तो वह सारी नींद साधना मय हो जाती है।
प्रशन (६): गुरु महाराज ने लिखा है कि God is power and energy, God is not physical appearance and as per ancient philosopher and scientist, energy remains conserved. So, if someone has achieved then how other people will be able to achieve? Since that energy is being achieved, more energy cannot be created.
श्री संजीव भैया जी द्वारा उत्तर: So God is power or energy, Einstein Jo Baat Kahi ki energy and matter can be converted back and forth so there is power and energy within us. We have power, we have energy and then we have a lot of things for example in our brain, which are dormant. So to enable our capabilities and capacities we have to connect to that energy.
तो जैसे हम ऊर्जा के source से कनेक्टेड हो जाते हैं, जब सूर्य का प्रकाश उससे जो हम देखे तो प्रकृति में जैसे फसलें ऊगति है, तो उसमें बारिश बारिश भी चाहिए लेकन सूर्य की भी जरूरत है, हमें बहुत सारे कार्य है जो सूर्य की शक्ति से सूर्य की एनर्जी से हो रहे हैं । तो वही चीज अध्यात्म में भी है। कि उस एनर्जी सोर्स से अपने आप को कनेक्ट करना, उस ऊर्जा स्रोत से जब हम अपना कनेक्शन बना लेते हैं , उससे जब हम जुड़ जाते हैं तो हमारे अंदर की सुसुप्त चीजें जो अभी तक, कैसे कुंडली जागरण की बात होती है हमारे यहां वह नहीं होता मगर उस तरह से हम इस साधना में भी जैसे कुंडली जागरण में यही स्थिति आती है वैसे ही हमारे यहां भी स्थितियां तो हमारे यहां भी आती है, बस उसका उस तरीके से उसको नहीं देखा जाता है या बतलाया जाता है। तो अपनी स्थिति को बदलने के लिए हमें जैसे उद्योग करना है हमें पहाड़ पर चढ़ना है तो उसके लिए एनर्जी चाहिए। वो एनर्जी कहां से आएगी। या तो अपने आप में से उस को जनरेट करो या किसी और सोर्स से ले लो। तो हमारा जो साधन है वह यह है यह जहां जो ऊर्जा है उससे अपने आप को कनेक्ट करो और उस ऊर्जा से अपने आप को जुड़ जाओ।
श्री मोहित भैया जी द्वारा उत्तर: इसमें प्रश्न यह भी है कि God has no physical appearance. तो जैसे अगर सागर को describe करना है तो पॉसिबल नहीं है। और उसकी कोई ऐसी अपीयरेंस भी नहीं है। और अगर सागर में से आप एक बाल्टी पानी निकाल लेते हैं, तो सागर में कोई फर्क भी नहीं पड़ता और जो उस बाल्टी में पानी है उसमें सागर के सारे गुण भी हैं। केवल जो विशालता और व्यापकता, जैसे बहुत सारा पानी होता है , लेकिन बाकी गुण समान ही है । और जैसे हम सुबह सुन रहे थे कि परमात्मा पूर्ण है और आत्मा भी पूर्ण है। और पूर्ण से निकलने वाला अंश भी पूर्ण। तो यह जरूरी नहीं है कि एक आदमी ने उस पावर को प्राप्त कर लिया तो दूसरा उसको नहीं कर सकता। वह कभी खत्म नहीं होती और हम हैं ना उसी जैसे बात हुई थी कि वह हम पावर हाउस से जुड़ जाते हैं तो हमारे अंदर भी उतनी ही पावर हो जाती है । जितना voltage सप्लाई है तो सबको बराबर पावर प्राप्त होती है।
प्रश्न (७) मैं बाल्यावस्था में इस सत्संग में आना जाना कर रहा हूं । साधना में सुबह-शाम बैठ पाता हूं। प्रथम बार परम पूज्य छोटे भैया का दर्शन किया उन्हीं का ध्यान किया क्या यह सही है और साधना नहीं कर पाता क्या मेरा उद्धार होगा कृपया बताएं।
श्री मोहित भैया जी द्वारा उत्तर: हमारे यहां की जो साधना है वह परम पूज्य छोटे भैया बतलाते थे कि वे बिना डिस्प्ले के लिफ्ट की समान है उसमें हमें यह पता नहीं चल पाता कि हम आज किस स्थिति में हैं । इसलिए सब ने यह बतलाया कि आप अपना स्वाध्याय कि आपके विचार और कर्म वह पहले से सुधार रहे हैं । जो ईश्वरीय गुण बताए गए हैं दया करुणा प्रेम आदि तो आपको अपने जीवन में दिखाई पड़ रहे हैं तो अगर ऐसा है आपको अगर लगता है कि मेरे विचार सुधर रहे हैं इसका मतलब है साधना सही चल रही है । और अपने परम पूज्य छोटे भैया के दर्शन किए और उनका ध्यान करते हैं
प्रश्न (८): सुबह शाम ध्यान करते हैं हम लोग तो सुबह शाम ध्यान करने से पहले गुरु अष्टकम बोलकर करना चाहिय या वंदना करके बोलना चाहिए, ध्यान में जाना चाहिए ।
श्री संजीव भैया जी द्वारा उत्तर: अक्सर जो प्रश्न आते हैं , वह प्रश्न जो है अगर हम उसको थोड़ा सा उस पर ध्यान दें इस प्रश्न का समाधान स्वयं ही हो जाएगा। क्योंकि अगर देखा जाए तो ध्यान एक अवस्था है इस ध्यान में हमको अपने मन को बांधना है। पहली चीज तो यह है कि मन तो बंधता नहीं है तो कैसे बांधा जाए। उसी के लिए सारा प्रपंच है। अब आप उसमें पहले प्रार्थना कर लें, तो थोड़ा सा मन बंधे। गुरु ध्यान के लिए कोई और मंत्र जाप कर ले तो थोड़ा बन्धे। तो यह तो सिर्फ तैयारी है। तो उसमे गुरु महाराज ने कहा है कि बाकी सब चीजों को छोड़कर प्रकाश का ध्यान करो।
तो यह गुरुअषटकम, प्रार्थना यह सब तो पीछे रहे असली चीज जिसमें हमें फोकस करना है , वह अब कभी-कभी लोग कहते हैं मैं इसका ध्यान करूं, मैं उसका ध्यान करूं । तो प्रकाश हमें लेना है । असली चीज जो गुरु महाराज ने हमें बताइए कि प्रकाश, प्रकाश के अलावा और कुछ नहीं। तो हम एक सोर्स से ले या दूसरे सोर्स से लें उसी में अटके हुए हैं । हम शुरू में ही अटके हुए हैं उससे आगे बढ़ना नहीं चाहते। प्रीप्रेशन में ही अटके हुए हैं। गुरु महाराज ने हमें क्या कहा कि हठयोग भी एक तरीका है , ज्ञान योग भी एक तरीका है , उपासना योग भी एक तरीका है। गुरु महाराज ने उन सब की मिलोनी करके हमें एक साधन बतलाया है जिसमें मन को पहले बांधो तो बाकी चीजें वैसे ही सुधर जाएंगे आगे और पीछे। तो अपने आप को जो प्रिपरेशन है यानी जब हम ध्यान के लिए अपने आपको तैयार कर रहे हैं तो हम प्रार्थना कर ले उनको देख रहे हैं लेकिन जो ध्यान गुरु महाराज ने हमें बतलाया कि सब कुछ छोड़ के मेरे प्रकाश को यानी प्रकाश को गुरु ईश्वर का ध्यान बस उसके अलावा कुछ नहीं रहनी चाहिए लेकिन क्योंकि हमारा ध्यान इसमें बनता नहीं है इसलिए आगे और पीछे प्रयत्न करते हैं।
बहुत अच्छा लगा। मेरे अनेक प्रश्नों का जवाब मिला। मेरी शंकाओं का समाधान हुआ। हर भंडारे में जाने की मेरी बहुत इच्छा होती है, लेकिन आफिस से बार बार छुट्टी लेना ठीक नहीं लगता। कोई रास्ता बताएं। परम् पूज्य संजीव भैया, मोहित भैया को सादर चरण स्पर्श।